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दहलीज से दूर | गौरव शाक्य

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Dahleez se door

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दहलीज से दूर
Gauav Shakya
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किसी के वादे भी जिन्हे, सब मंजूर होते हैं,
दिल थामे हैं आज, जो चकनाचूर होते हैं..
अब डर है कि कहीं रह जाए, न स्वप्न अधूरा,
तो कुछ लोग जिम्मेदारी से, भरपूर होते हैं।
जब वक्त आता है, घर छोड़ने का तो गौरव,
पैर किस्तों में ही दहलीज से, दूर होते हैं।
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कैद हैं वो लोग, जो मशहूर होते हैं,
आज परिंदे भी मन से, मजदूर होते हैं..
भविष्य की गहनता, ज़हन में है जिनके,
दिल में उबल रहे उनके, कई फितूर होते हैं।
जब वक्त आता है, घर छोड़ने का तो गौरव,
पैर किस्तों में ही दहलीज से, दूर होते हैं।
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खुद से अनजान, खुद में ही मगरूर होते हैं,
वही एक दिन ख्यालों के, हुज़ूर होते हैं..
इस वक्त की आदत, कुछ इस तरह देखी है मैने,
कोयले में रहकर भी कुछ, कोहिनूर होते हैं।
जब वक्त आता है, घर छोड़ने का तो गौरव,
पैर किस्तों में ही दहलीज से, दूर होते हैं।
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जीवन में अजीब कई, दस्तूर होते हैं,
छोटी सोच में पले कई, गुरूर होते हैं..
शाजिशें, छल तो पुराने तौर-तरीके हैं,
वरना जेल में भी बंद कई, बेकसूर होते हैं।
जब वक्त आता है, घर छोड़ने का तो गौरव,
पैर किस्तों में ही दहलीज से, दूर होते हैं।

Thank you
❤️
Gaurav Shakya

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